मुस्लिमों को लेकर भाजपा से अलग मोदी का रवैया, अंतरराष्ट्रीय संबंधों का दबाव हो सकता है इसकी वजह

दो नाराज तबकों, मुसलमानों और किसानों की तरफ हाथ बढ़ाने की महत्वपूर्ण पहल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2020 के आखिरी हफ्ते का इस्तेमाल किया। हमारी ज्यादा दिलचस्पी इसमें है कि मोदी ने खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे भारतीय मुसलमान अल्पसंख्यकों की ओर पहली बार हाथ बढ़ाया है।

मोदी ने इसके लिए अचानक 22 दिसंबर का दिन चुना। पिछले साल मोदी ने रामलीला मैदान में दिए अपने भाषण में इसी तरह की बातें की थीं, जब नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ आंदोलन अपने शिखर पर था। इस बार मुसलमानों के लिए उनका राजनीतिक संदेश उनकी अपनी पार्टी की राजनीति और गतिविधियों के उलट दिखा। इस सबसे हम यह निष्कर्ष निकालने का जोखिम उठा सकते हैं कि सरकार को एहसास हो गया है कि ऐसी राजनीति और रणनीति पर ज्यादा जोर देने का अंतरराष्ट्रीय संबंधों और आंतरिक सुरक्षा पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

प्रधानमंत्री का ऐसा संदेश देने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के वर्षगांठ-दिवस को चुनना काफी महत्वपूर्ण है। इस साल के शुरू में यहां पुलिस की ज्यादतियों और लांछनों के विरोध में तूफान मचा हुआ था। आज मोदी इसे मिनी इंडिया बता रहे हैं। इसके छात्रों और अध्यापकों में ज्यादा संख्या युवा और जागरूक भारतीय मुसलमानों की है, जो अगर नाराज हैं और खुद को अलग-थलग किया गया मानते हैं तो इसकी वजह भी है। लेकिन, इससे मोदी क्यों परेशान हों? मुसलमान उन्हें वोट तो देते नहीं। वैसे भी, पश्चिम बंगाल और असम के चुनावों में ध्रुवीकरण की राजनीति का सहारा लेने की जरूरत पड़ेगी ही।

मोदी और शाह के नेतृत्व में भाजपा ने अल्पसंख्यकों को छोड़कर छोटे जनाधारों में वोट बटोरने का चुनावी करिश्मा कर दिखाया है। इन वोटों ने मुस्लिम वोट को उनके लिए बेमानी कर दिया है। तो अब इन्होंने उनकी ओर हाथ बढ़ाने की जहमत क्यों उठाई? नाराज, हताश, उपेक्षित मुसलमान वास्तव में उनके आधार को मजबूत कर सकते हैं।

इसकी वजह जानने के लिए हमें 22 दिसंबर 2019 को रामलीला मैदान में मोदी के भाषण को देखना होगा। उस भाषण में उन्होंने तारीफ की थी कि मुस्लिम प्रदर्शनकारी तिरंगा झंडा और भारतीय संविधान हाथ में लेकर विरोध कर रहे हैं। मोदी ने उन्हें सलाह दी थी कि वे आतंकवाद के खिलाफ भी आवाज़ बुलंद करें। लेकिन मोदी ने इस सुर को तुरंत छोड़ दोस्ताना और उदारवादी लहजा अपनाते हुए इस बात पर जोर दिया कि उनकी किसी कल्याणकारी योजना में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव नहीं किया गया। निष्पक्ष होकर देखें तो यह सही लगेगा।

मोदी ने उन अहम मुस्लिम देशों के नाम भी गिनाए, जिन्होंने उन्हें प्रतिष्ठित राष्ट्रीय सम्मानों और पुरस्कारों से नवाजा है। यह सब मोदी की संभावित सोच में झांकने के सूत्र थमाते हैं। सम्मान, प्रशंसा हर किसी को पसंद है। ज्यादा अहम यह है कि यह मुस्लिम, खासकर अरब देशों की ओर हाथ बढ़ाने के उनकी अहम कोशिशों का ही हिस्सा था। पाकिस्तान के संरक्षक सऊदी अरब और यूएई उससे दूर खिसक गए हैं।

मोदी इन उपलब्धियों को गंवाना नहीं चाहते। इस मामले में दोस्ताना इस्लामी संसार की तरफ से दबाव काफी बढ़ा है। अगर भाजपा की राजनीति ध्रुवीकरण की धुरी पर घूमती रही, तो वे पाकिस्तान के खिलाफ भारत को कब तक समर्थन देते रहेंगे? उधर ईरान और तुर्की में प्रभाव बढ़ाने की होड़ है, अमेरिका इजरायल से संबंध सामान्य बनाने के लिए दबाव डाल रहा है। जब मलेशिया और पाकिस्तान भी इजरायल के प्रति गर्मजोशी दिखा रहे हैं, तब भारत अरब दोस्तों को परेशानी में डालने की शायद ही सोचे।

उधर, व्हाइट हाउस में तीन हफ्ते में बाइडेन होंगे। वे ईरान से फिर रिश्ते बनाने की बात कर चुके हैं, जिससे इस्लामी संसार और फारस की खाड़ी से पूरब में कई संभावनाओं के द्वार खुल सकते हैं। इधर, अपने पड़ोस में है बांग्लादेश। इसके साथ सबसे अहम रणनीतिक संबंध पर CAA-NRC विवाद के कारण जो आंच आई, उसे दुरुस्त करना जरूरी था। पाकिस्तान और चीन, दोनों भारत में बांग्लादेशी मुसलमानों के खिलाफ बनाए जा रहे माहौल का फायदा उठाने की फिराक में लग गए हैं।

जाहिर है, यह हृदय परिवर्तन से ज्यादा ऐसे समय में चाल बदलने की कोशिश लगती है, जब दुनिया की तस्वीर बदल रही है और भारत की आर्थिक रफ्तार के साथ मोल भी कम हुआ है। घरेलू राजनीति को रणनीतिक हितों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों से खिलवाड़ की छूट देने के नतीजे उभर रहे हैं। यह तब हो रहा है जब चीन से सीधे मुकाबले में खड़े देश के तौर पर भारत की कमजोरियां बढ़ी हैं और पांच दशक पहले के मुकाबले आज उसे दोस्तों की ज्यादा जरूरत है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/34QP8wG

Comments

Popular posts from this blog