देश के लिए यह लड़ाई मुश्किल क्योंकि महज 36% परिवारों में लोग खाने से पहले साबुन से हाथ धोते हैं, एक किमी के दायरे में 450 से ज्यादा लोग रहते हैं
देश में कोरोनावायरस के मामले 15 लाख के पार हो गए हैं। एक्टिव केसेस की संख्या भी 5 लाख के ऊपर हो गई है। हालांकि, राहत वाली बात ये है कि हमारे यहां कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। चिंता जताई जा रही है कि आने वाले समय में देश में संक्रमण की रफ्तार और तेज होगी।
ऐसे में सवाल यही है कि आखिर सारे उपाय आजमाने के बाद भी कोरोना पर काबू पाना मुश्किल क्यों हो रहा है? इसके 5 संभावित कारण ये हो सकते हैं...
1. पॉपुलेशन डेंसिटीः हर 1 किमी के दायरे में 450 से ज्यादा लोग
देश की आबादी है 137 करोड़ से भी ज्यादा। सबसे ज्यादा आबादी के मामले में हम चीन के बाद दूसरे नंबर पर हैं। लेकिन, पॉपुलेशन डेंसिटी के मामले में हम चीन और पाकिस्तान से भी आगे हैं। वर्ल्ड बैंक के आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में हर 1 किमी के दायरे में 455 लोग रहते हैं। जबकि, चीन में ये आंकड़ा 148 और पाकिस्तान में 275 का है।
खतरा क्यों : एक कोरोना संक्रमित महीनेभर में 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है।
2. परिवार: देश में हर घर में औसतन 4 लोग से ज्यादा रहते हैं
2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में 70% से ज्यादा परिवार ऐसे हैं, जहां 4 से ज्यादा लोग रहते हैं। जबकि, एनएसएसओ का सर्वे बताता है कि देश में हर घर में औसतन 4.3 लोग रहते हैं। शहरी इलाकों में यही औसत 3.9 का है और ग्रामीण इलाकों में 4.5 का। यूपी-बिहार जैसे राज्यों में तो ये औसत 5 से ज्यादा का है।
इतना ही नहीं, ज्यादातर भारतीय परिवारों में तीन से चार पीढ़ियां तक साथ-साथ रहती हैं।
खतरा क्यों : अगर एक भी व्यक्ति संक्रमित हुआ, तो पूरा परिवार संक्रमित हो सकता है।
3. पानी की सुविधाः 48.3% परिवारों के पास पीने के पानी की सुविधा नहीं
कोरोनावायरस से बचने के लिए अभी सबसे ज्यादा जिस बात पर जोर दिया जा रहा है, वो है बार-बार हाथ धोना। डब्ल्यूएचओ और सरकार की तरफ से यही कहा जा रहा है कि कोरोना से बचने के लिए दिन में कम से कम 20 सेकंड तक 10 बार हाथ जरूर धोएं।
अगर दिनभर में 20 सेकंड तक 10 बार हाथ धोएं, तो हर बार हाथ धोने के लिए 2 लीटर पानी चाहिए। मतलब दिनभर में 20 लीटर। इस तरह 4 लोगों के एक परिवार को दिन में 10 बार हाथ धोने के लिए 80 लीटर पानी चाहिए। लेकिन, सच तो ये है कि देश के 48% से ज्यादा परिवारों के पास पीने के पानी की सुविधा नहीं है, तो हाथ धोने के लिए पानी कहां से लाएंगे?
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी एनएसएसओ के 2018 में हुए सर्वे में सामने आया था कि देशभर में 51.7% परिवारों तक ही पीने के पानी की सीधी पहुंच है। यानी, इन परिवारों के घरों तक पानी आ रहा है। इस हिसाब से 48.3% परिवारों के पास घर तक पानी ही नहीं आता। इसका मतलब यही हुआ कि इन्हें पानी के लिए ट्यूबवेल, हैंडपंप, कुएं, वॉटर टैंकर के भरोसे रहना पड़ता है।
खतरा क्यों : हैंडपंप, कुएं में पानी भरते समय सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान नहीं रखा जाता।
4. शौचालयः 20% से ज्यादा परिवारों के पास शौचालय की कोई सुविधा नहीं
हमारे देश में न सिर्फ पानी की, बल्कि शौचालयों की भी कमी है। एनएसएसओ का सर्वे बताता है कि देश में 20.2% परिवार ऐसे हैं, जिनके पास शौचालय की कोई सुविधा ही नहीं है। यानी एक तरह से ऐसे लोग आज भी खुले में ही शौच करने को मजबूर हैं।
एनएसएसओ के मुताबिक, 68.1% परिवारों तक ही शौचालय की पहुंच है। यानी इन परिवारों में घर में ही शौचालय है। जबकि, 11.2% परिवार पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं।
खतरा क्यों : चीन की एक रिसर्च बताती है कि शौच के जरिए भी वायरस हवा में फैल सकता है।
5. हाथ धोने की आदतः 36% परिवारों में लोग खाने से पहले साबुन या डिटर्जेंट से हाथ धोते हैं
एनएसएसओ के सर्वे के मुताबिक, देश के सिर्फ 35.8% परिवार ही ऐसे हैं, जहां खाना खाने से पहले हाथ धोने के लिए साबुन या डिटर्जेंट का इस्तेमाल होता है। जबकि, 60.4% परिवार ऐसे हैं, जहां खाने से पहले सिर्फ पानी से ही हाथ धो लिए जाते हैं।
इसी तरह से 74% से कुछ ज्यादा ही परिवार ऐसे हैं, जहां शौच के बाद साबुन या डिटर्जेंट से हाथ धोए जाते हैं। आज भी 13% से ज्यादा परिवारों में शौच के बाद सिर्फ पानी से ही हाथ धुलते हैं।
खतरा क्यों : रिसर्च कहती है कि साबुन से हाथ धोकर संक्रमण का खतरा 90% तक कम हो सकता है।
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